30 days festival - ritual competition 8-Nov-2022 ( 11) छट पूजा बिहार राज्य का मुख्य त्यौहार
शीर्षक = छठ पूजा, बिहार राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार
बिहार, हमारे उत्तर प्रदेश का पडोसी राज्य जिसकी राजधानी पटना और गया बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय और बिहार राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। इस नगर का हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में गहरा ऐतिहासिक महत्व है। शहर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। गया तीन ओर से छोटी व पत्थरीली पहाड़ियों से घिरा है, जिनके नाम मंगला-गौरी, श्रृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि हैं। नगर के पूर्व में फल्गू नदी बहती है।
वैसे तो यहाँ हर एक त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, जिसमे रामनवमी, जन्मआष्ट्मी, दशहरा, दीपावली होली इत्यादि, लेकिन इन सब के बावज़ूद एक त्यौहार जो की बिहार राज्य को एक अलग पहचान देता है
और उसके आने का इंतज़ार हर बिहारी परिवार के हर सदस्य को होता है,जिसे छट पूजा के नाम से जाना जाता है,
विदेशो या फिर हिंदूस्तान के भिन्न भिन्न शहरों में रह रहे प्रवासियों का यही एक सपना रहता है, की वो छट पूजा को अपने परिवार वालो के साथ मना सके, इसलिए वो पहले से ही रेलवे टिकट, बस टिकट और साथ ही साथ विदेशो में रहने वाले हवाई जहाज के टिकट महीने पहले ही करा लेते है
और घर जाने की आस में एक एक दिन गुज़ारते है ,
त्यौहार का मतलब ही परिवारों को जोड़ना, एक साथ मिलकर त्यौहार की खुशियों को दोबाला करना होता है, तीन दिन तक चलने वाला ये त्यौहार बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ बिहार के साथ साथ अन्य राज्यों और विदेशो में रह रहे हिन्दू परिवारों द्वारा मनाया जाता है ।
इस पर्व के जरये ही शायद इस आधुनिक युग में जहाँ बहुत सी चीज़ें और कारोबार विलुप्त हो रहे है, वही इस त्यौहार के माध्यम से सूप कारोबारी ( जिसे छलना भी कहा जाता है ) जो अपनी रोज़ी रोटी घास फूस के तिनको पर अपनी कारीगरी दिखा कर कमाते है, इसी त्यौहार के बहाने उनके हुनर को ज़िंदा और अपने आप को प्रकर्ति से जुड़े रहने का अवसर प्रदान होता है ।
आइये जानते है, इस त्यौहार के बारे में
छठ पूजा सूर्य, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद, छठी मैया, जिसे मिथिला में रनबे माय भी कहा जाता है,भोजपुरी में सबिता माई और बंगाली में रनबे ठाकुर बुलाया जाता है। पार्वती का छठा रूप भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन बाद छठ मनाया जाता है। मिथिला में छठ के दौरान मैथिल महिलाएं, मिथिला की शुद्ध पारंपरिक संस्कृति को दर्शाने के लिए बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं।
त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब 'अवसर' या 'त्यौहार') आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री - पुरुष - बुढ़े - जवान सभी लोग करते हैं। कुछ भक्त नदी के किनारों के लिए सिर के रूप में एक प्रोस्टेशन मार्च भी करते हैं।
पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है।यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने डायस्पोरा के साथ मनाया जाता है।
आइये जानते है इसके पीछे की पौराणिक कथाओं के बारे में
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
रामायण से
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत से
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
पुराणों से
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
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30 days festival / ritual कम्पटीशन हेतु
Palak chopra
09-Nov-2022 04:01 PM
Shandar 🌸🙏
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Mithi . S
09-Nov-2022 11:23 AM
Bahut khub 👌
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Gunjan Kamal
08-Nov-2022 06:45 PM
हमारे राज्य के प्रमुख त्योहार की जानकारी आपने बखूबी दी। शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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